786 की संख्या अरबी भाषा में “बिस्मिल्लाह–हिर्रहमा–निर्रहीम” का सांख्यिक रुप कहा जाता है। यह एक छोटी सी दुआ है जो कुरान के प्रत्येक अध्याय के आरम्भ में लिखी जाती है।
इसका मतलब है “अल्लाह के नाम से जो बड़ा महेरबान और निहायत रहम वाला है” (In the name of Allah, The Most Gracious and The Most Merciful), इस्लाम धर्म में कोई भी काम शुरू करते समय “बिस्मिल्लाह-हिर्रहमा-निर्रहीम” पढते हैं।
786 की शुरुआत :- यह परम्परा है कि अरबी में प्रत्येक अक्षर को एक संख्या का मूल्य प्रदान कर दिया गया है। जिसे गणित की ‘अबजद (Abjad)‘ व्यवस्था के रूप में जाना जाता है। बिस्मिल्लाह-हिर्रहमा-निर्रहीम लिखने में इसमें जो अक्षर आते हैं उनका अंकीय मूल्य कुल मिलाकर 786 होता है।
अबजद के अनुसार विभिन्न अक्षरों का मान
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ (बिस्मिल्लाह-हिर्रहमा-निर्रहीम) में 19 अक्षर हैं और उनके संख्यात्मक मान इस प्रकार हैं:
- ب=2
- س =60
- م =40
- ا =1
- ل =30
- ل =30
- ﻫـ =5
- ا=1
- ل =30
- ر =200
- ح=8
- م=40
- ن=50
- ا=1
- ل=30
- ر=200
- ح=8
- ی =10
- م=40
इन सभी मूल्यों का योग 786 है।
कुछ लोग जब कोई चीज रिकार्ड करते हैं अथवा पत्र में बिस्मिल्लाह लिखना चाहते हैं तो वह पूरी दुआ लिखने की बजाए केवल 786 लिख देते हैं। इस्लाम में इस तरह ये एक साहित्यिक परम्परा बनी है ।